ऐ निरीह पंछी मेरी चाहत है सुन तू ऊँची उड़ान भरे
भय न कर कोमल पंखो का इन्हें हिला मजबूत बना
इससे पहले बाज़ झपट ले सर्प निगल ले
तू कोशिश कर कुछ तो उड़ कि पंख परवाज़ भरें
इतना भय मन में क्यों तेरे मन में क्यों संताप भरे
ये सोच की अगर उड़ न पाया तो निश्चित सब व्यर्थ हो जायेगा
किसी पिंजरे में फिर कैद तू होगा या कही तू रौंदा जायेगा
मुझको तेरी खैर बहुत है मैं वन का बूढ़ा बरगद हूँ
मुझको कितना चैन मिलेगा जब तू नील गगन में छाएगा
मुड़ के न देख बीती राहों में आँधी तूफान जो थे
बिखरे घौसले के तिनको से मोह त्याग अब आगे देख
कुछ आंखे तुझ पे भी लगी है अपनों की घनघोर व्यथाएँ मन में लिए
सोच अगर तू उड़ न पाया उनको कैसे आज़ाद कराएगा
तेरा मन तेरी ताकत है तेरे आंसू तेरी ऊर्जा है
जाया मत कर दम को भरकर तू उड़ने के कोशिश कर
मैं बूढ़ा बरगद साथ तेरे हर वक़्त राह मैं ताकूँगा
जब ख़ुशी से तू उड़ कर फिर कुछ थक कर सुस्ताने मेरी छाव में आएगा
मेरी चाहत है तू ऊँची उड़ान भरे ... हाँ मेरी चाहत हैं ...
भय न कर कोमल पंखो का इन्हें हिला मजबूत बना
इससे पहले बाज़ झपट ले सर्प निगल ले
तू कोशिश कर कुछ तो उड़ कि पंख परवाज़ भरें
इतना भय मन में क्यों तेरे मन में क्यों संताप भरे
ये सोच की अगर उड़ न पाया तो निश्चित सब व्यर्थ हो जायेगा
किसी पिंजरे में फिर कैद तू होगा या कही तू रौंदा जायेगा
मुझको तेरी खैर बहुत है मैं वन का बूढ़ा बरगद हूँ
मुझको कितना चैन मिलेगा जब तू नील गगन में छाएगा
मुड़ के न देख बीती राहों में आँधी तूफान जो थे
बिखरे घौसले के तिनको से मोह त्याग अब आगे देख
कुछ आंखे तुझ पे भी लगी है अपनों की घनघोर व्यथाएँ मन में लिए
सोच अगर तू उड़ न पाया उनको कैसे आज़ाद कराएगा
तेरा मन तेरी ताकत है तेरे आंसू तेरी ऊर्जा है
जाया मत कर दम को भरकर तू उड़ने के कोशिश कर
मैं बूढ़ा बरगद साथ तेरे हर वक़्त राह मैं ताकूँगा
जब ख़ुशी से तू उड़ कर फिर कुछ थक कर सुस्ताने मेरी छाव में आएगा
मेरी चाहत है तू ऊँची उड़ान भरे ... हाँ मेरी चाहत हैं ...